भगत सिंह की जीवनी, कहानी | Bhagat Singh biography in hindi, wife

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भगत सिंह का जीवन परिचय : भगत सिंह की पूरी कहानी

Shahid Bhagat Singh rare photo

भारत देश के सबसे युवा क्रांतिकारी, एक सच्चा देशप्रेमी, देशभक्त शहीद भगत सिंह (Bhagat Singh) भारत की आजादी के लिए चंद लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजों से भीड़ गए। और कई बार भीड़ा और कई बार जेल भी गए और रिहा भी हुए लेकिन एक दफा ऐसा हुआ कि देश की मांग को पूरा करने के लिए अंग्रेजो के सेंट्रल असेंबली में low intensity का एक बम फेंक दिया जिससे किसी को भी नुकसान नहीं हुआ और साथ में पर्चे भी फेंके जिसमें लिखा था बहरो को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है।

और चारो तरफ धुंआ ही धुआं हो गया भगत सिंह चाहते तो वहाँ से भाग सकते थे। लेकिन भगत सिंह वहां से नहीं भागते हैं और नारा देने लगते हैं इंकलाब जिंदाबाद, इंकलाब जिंदाबाद! और अपने आप को खुद से अंग्रेजो के हवाले देते हैं और कहते हैं मुझे गोली मार दो लेकिन भगत सिंह को देश की आजादी की मांग करने और छोटे से low intensity का बम फेंकने के जुर्म में फांसी की सजा सुना दी।

24 मार्च 1931 की तारीख मुक़र्रर की गई थी लेकिन कुछ कारणों से 23 मार्च को भगत सिंह को 23 साल की उम्र में ही फांसी दे दी गई, कितना संयोग की बात है। इन सभी घटनाओं के पीछे एक बहुत बड़ी वजह है जिसकी बारे में आपको कहानी के बीच में पता चलेगी। भगत सिंह अपने माँ बाप के बारे में एक पल भी नहीं सोचा कि उसके कुछ हो जाने से उनपर क्या बितेगी।

Bhagat Singh full name Bhagat Singh Sindhu
Bhagat Singh Birthday (DOB)27 सितंबर सन् 1907
Bhagat Singh age (उम्र)23 साल
Bhagat Singh birth place (जन्मस्थान) बांगा गाँव ल्यालपुर जिला (अब पाकिस्तान में)
Bhagat Singh death (मृत्यु) 23 मार्च सन् 1931
Bhagat Singh Mother (माता)विद्यावती कौर
Bhagat Singh (पिता) किशन सिंह
Bhagat Singh Brother (भाई) 6 – राजिंदर सिंह, कुलबीर सिंह, जगत सिंग, प्रकाश सिंह, अमर सिंह, रणवीर सिंह, कुलतार सिंह
बहन 1 – शंकुलता कौर
भगत सिंह की पत्नी शादी नहीं की (देशप्रेमी)

भगत सिंह का जन्म परिवार और शिक्षा

भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर सन् 1907 को बांगा गाँव ल्यालपुर जिला में हुआ था जो की लाहौर में पड़ता था चूंकि अब पाकिस्तान में पड़ता है। भगत सिंह के माता का नाम विद्यावती कौर और पिता का नाम किशन सिंह है। भगत सिंह के सात भाई और एक बहन थी। भगत सिंह की कुछ पढ़ाई लिखाई लाहौर हुई थी, लेकिन उसमे भी भगत सिंह को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा था। क्योंकि उस समय के जो अँग्रेजी हुकुमत के स्कूल हुआ करते थे जिसमे दाखिला नहीं मिलता था।

दयानानद एंग्लो वैदिक स्कूल जिसे आज DAV के नाम से जाना जाता है उसमे दाखिला मिलता है, और पढाई शुरू करते हैं। और बचपन से ही Bhagat Singh पढाई में बहुत तेज थे और बहुत कम उम्र में 50 से 60 किताबे पढ़ चुके थे स्कूल के टाइम में जबकि वो किताबे स्कूल की थी भी नहीं। भगत सिंह को Political reform (राजनीतिक सुधार), Social Reform (सामाजिक सुधार), Economic Regime (आर्थिक व्यवस्था) इस तरह की किताबे पढने का बड़ा शौक था। बचपन से ही भगत सिंह के दिमाग में देश की आजादी की भावना जाग चुकी थी।

भगत सिंह को देश के प्रति प्रेम कब जागा?

Bhagat Singh बेकार की चीजो में अपना वक्त नहीं जाया करते थे जहाँ भी आजदी के आन्दोलन होते थे उसमे शामिल हो जाते थे। 13 अप्रैल सन् 1919 को जलियावाला बाग कांड किनको याद नहीं होगा उस घटना से भगत सिंह को बहुत आहत हुआ था।उस समय इनकी उम्र 11 – 12 साल ही रही होगी और 40 KM तक पैदल ही चलकर उस जलियावाला बाग में गए, और वहां पर जाकर उन्होंने उस घटना को फील किया, और वहां मौजूद कुआँ जिसमे आज भी उस पानी में रक्त की बूंदे है। और वहां से भगत सिंह ने खून से सने मिट्टी को एक बोतल में भरकर अपने घर ले आया।

और उस मिट्टी को लाकर भगत सिंह घर में एकदम से कुछ समय के लिए चुपचाप शांत सा पड़ गया। जब उनकी बहन ने पूछा कि क्या हुआ तो भगत सिंह ने खून से सनी मिट्टी को दिखाया और कहा इस मिट्टी में उन देशवासियों का रक्त मिला हुआ है। जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपनी जान दे दी। जिसका मैं अंग्रेजो से बदला लेकर ही रहूँगा अंग्रेजो को देश से मार भगाउंगा। जब पिता खेत में आम की गुठली बो रहे थे तब भगत सिंह ने पूछा आप आम की गुठली क्यों बो रहे है तो पिताजी ने कहा आम का पेड़ होगा उसके बाद बहुत से आम फरेंगे।

तो यहाँ पर भगत सिंह ने कहा कि मैं बन्दुक बोऊंगा ताकि बन्दूको का पेड़ उगे और मुझे बंदूके इसलिए चाहिए की मुझे अंग्रेजो को भागना है। सन् 1920 से गाँधी जी को देश से बहुत सहयोग मिल रहा था और उस वक्त गाँधी जी देश के लिए एक बहुत शक्तिशाली आवाज बन चुके थे। जिन्होंने देश के लोगो की समस्याओ और उसकी आवाजो को अहिंसावाद तरीके से उठाई और अंग्रेजो के सामने रखा उसका बहिष्कार किया।

भगत सिंह का असहयोग आन्दोलन में शामिल होना

1920 में गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन शुरू किया जिसमे गोरो के द्वारा बनाई गई चीजो का बहिष्कार किया जाने लगा।गाँधी जी ने सीधा कह दिया कि अंग्रेजो के द्वारा बनाई गई चीजो के इस्तेमाल ही न करो अपने अपने एक दिन अंग्रेज देश छोड़ के चले जायेंगे। क्या आपको ऐसा लगता है? गाँधी जी ने कहा था कि मैं इस काम को मैं शांतिपूर्वक तरीके से करा दूंगा और पूरा देश मान भी गया था, गाँधी जी के विचार से भगत सिंह बहुत प्रभावित थे और उनके साथ हो लिए।

चौरी चौरा कांड क्या था?

असहयोग आन्दोलन जिस वक्त चल रहा था उस दरमियान चौरी चौरा स्थान जो बिहार के गोरखपुर में पड़ता है जहाँ पर 1922 में वहां पर पुलिस थाने के सामने पुरे जोर शोर से प्रदर्शनकारियों के साथ मिलकर वहां बिक रहे अंग्रेजी शराब, कपड़े और अन्य चीजो का बहिष्कार कर रहे थे।

और प्रदर्शनकारी कह रहे थे गोरे वापस जाओ और ये अंग्रेजो के द्वारा बनाये गए चीजो को बंद करो, तो वहां पर बेच रहे अंग्रेजी सामानों के मालिक ने वहां के थाने के गुप्तेश्वर सिंह के नाम के थानेदार को शिकायत कर दी। और कहा कि ये लोग मेरा धंधा बंद करवा देगा आप कुछ करो, उसके बाद पुलिस बाहर आते है और हवाई फायरिंग करते है और कहते हैं की बंद करो इस आन्दोलन को, लोगो ने कहा हमलोग बस कह रहे की हम अंग्रेजी सामान नहीं खरीदेंगे लेकिन गुप्तेश्वर सिंह नहीं माने वो भीड़ करीब 4000 लोगो की थी।

उसके बाद गुप्तेश्वर सिंह फिर हवाई फायरिंग करते हैं फिर वो लोग नहीं मानते है उसके बाद गुप्तेश्वर सिंह प्रदर्शनकारियों में से दो लोगो को गोली मार देता है और वो वहीं मर जाता है। प्रदर्शनकारियां और गुस्सा हो जाता है उसके बाद फिर हवाई फायरिंग करते है। लेकिन कोई असर नही होता है उसके बाद कुछ और प्रदर्शनकारी को गोली मार देता है और उसकी मृत्यु हो जाती है।जब उस थानेदार गुप्तेश्वर सिंह की सारी गोलियां खतम हो गई थी तब उसके बाद भीड़ ने पुलिस वालो को ही मारना शुरू कर दिया। और भगा भगा कर थाने के अन्दर ले गया और उसके बाद थाने में बंद करके पुलिस वालो को जिन्दा जला दिया।

चौरी चौरा में हुए कांड में करीब 17 पुलिस कर्मी की जल कर मौत हो गई थी।

भगत सिंह ने अपना अलग दल कौन सा बनाया?

चौरी चौरा कांड से यहाँ पर महात्मा गांधी जी को बहुत आहत होती है और कहता है कि मैं अपना आन्दोलन वापस ले रहा हूँ। मैं कह रहा हूँ असहयोग, अहिंसा के बलबूते पर हम आजादी लेना चाहते हैं और तुमने इतने सारे पुलिस वाले को मार दिया उसके बाद गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस ले लिया। और जैसे ही आन्दोलन वापस लिया वैसे ही दो दल बन गए एक गर्म दल एक नर्म दल जिसमे भगत सिंह का गर्म दल था और गाँधी जी का नर्म दल था।

उन दिनों के बोल्शेविक आन्दोलन जो कि रसिया का था उससे भगत सिंह बहुत प्रभावित हुए थे, भगत सिंह ने कहा अब तो हमें लड़ना ही पड़ेगा। गर गाँधी जी ने असहयोग आन्दोलन वापस नहीं लेते तो आजादी शायद हमें जल्दी मिल जाती, एक वक्त भगत सिंह को लग रहा था की असहयोग आन्दोलन से भारत को जल्दी आजादी मिल जाएगी क्योंकि उस आन्दोलन में गाँधी जी को देश के बहुत से लोगों का सहयोग मिल रहा था। लेकिन चौरी चौरा कांड के कारण असहयोग आन्दोलन को वापस लेने के बाद भगत सिंह ने एक अपना अलग गर्म दल बना लिया।

जिसमे सिर्फ लड़ाकू लोग थे और वो सिर्फ अंग्रेजो से लड़ाई करके ही देश की आजादी लेना चाहते थे। और उन दिनों भगत सिंह ने कॉलेज ज्वाइन किया लाला लाजपत राय का पंजाब के अन्दर जो पाकिस्तान के अन्दर पड़ता था। जब भगत सिंह खाली रहते थे तब करीब 300 किताबे पढ़ डाली, उसके बाद अपने काम को अंजाम देने के लिए प्लान बनाते थे।

भगत सिंह जब देश के लिए घर छोड़ कर भाग गया

1924 में भगत सिंह 17 साल के थे मां ने शादी के लिए बहुत कहा लेकिन भगत सिंह इंकार करते रहे और कहा की मेरी दुल्हन मेरी दुल्हन नहीं होगी अब आजादी ही मेरी दुल्हन होगी। भगत सिंह इतने बड़े देशभक्त, देशप्रेमी थे अपनी मां की भी परवाह नहीं की, एक नहीं सुनी और एक दिन भगत सिंह चिट्टी लिखकर रात में ही घर से फरार हो गए। मां रोती रही एकदम अकेली सी पड़ गई थी, मां आखिर मां होती है। भगत सिंह पंडित आजाद की टीम में शामिल हो गये। भगत सिंह पंडित आजाद की टीम में शामिल होने के बाद सन् 1925 में काकोरी काण्ड की तैयारी में लग गए।

भगत सिंह को पैसे की जरुरत थी अंग्रजी खजाना को लूटना जरुरी था सो लूट लिया प्लान तो सफल रही, लेकिन कुछ दिन बाद उनके लोग पकड़े जाते हैं। अशफाकउल्लाह खान और राम प्रसाद बिस्मिल्ल को फांसी की सजा सुना दी जाती है। इस फांसी को भगत सिंह भूलते नहीं है उन्हें याद था बस मौके का इन्तेजार कर रहे थे। भगत सिंह उसके बाद कहते है सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है देखना है जोर कितना बाजुएँ कातिल में हैं। उसके बाद भगत सिंह दशहरा ग्राउंड में चले गए और उन दिनों अखबारों में पत्रिकाओ में अपना लेख लिखा करते थे।

जब भगत सिंह को अंग्रेजी पुलिस पकड़ लेती है

भगत सिंह जब पत्रिकाओं में लेख लिखा करते थे लोगो को अंग्रजी हुकूमत के खिलाफ जागरूक करने के लिए तो उसमे कभी अपना नाम लिखते थे तो कभी बेनाम नाम से, तो पर्चा में भगत सिंह अंग्रजी हुकूमत के खिलाफ लिखाकर दशहरा ग्राउंड में बांटते थे और एक दिन पर्चा बाटते हुए पकड़े गए। और तब भगत सिंह बम फोड़कर भागने लगते हैं लेकिन पकड़े जाते हैं, और उसके बाद भगत सिंह को जेल ले गए। अंग्रेजी हुकुमत कोर्ट जानती थी की गर भगत सिंह जेल से रिहा हो गया तो इस बार कुछ बड़ा कर सकता है तो किसी तरह भगत सिंह को छोड़ना नहीं है नहीं तो ये हमारे लिए बहुत बड़ा खतरा हो सकता है।

जब भगत सिंह ने बेल की बात की तो अदालत ने उस समय भगत सिंह से 60 हजार रुपये मांग लिए, साल 1926 – 30 के आसपास आप समझ सकते थे की उस वक्त के 60 हजार कितना होता होगा। और आज के मुकुबले कुछ भी नहीं है उसके लिए भगत सिंह के कई खेत तक बेचने पड़ गए थे तब जा के इनको जमानत मिली। भगत सिंह को जमानत मिलने पर भगत सिंह अपने अगले मिशन पे लग गए। भगत सिंह लाला लाजपत राय को गुरु मानते थे, भगत सिंह गर्म दल के थे लाला लाजपत राय नर्म दल के थे दोनों के विचारो में बहुत अंतर था।

लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेना

1928 में लाला लाजपत राय ने भगत सिंह को मना लिया था की हमलोग साइमन कमीशन के खिलाफ शांति तरीके आन्दोलन करेंगे। साइमन कमीशन वापस जाओ बस ये नारा देना है बिना हथियार के लेकिन वहां आन्दोलन में पुलिस वालो ने आन्दोलनकारियों पर लाठी चार्ज कर दिया। जिसमे लाला लाजपत राय गंभीर रूप से घायल हो गए और इलाज के दरमियान उनकी मृत्यु हो गई। भगत सिंह, राजगुरु, चंद्रशेखर, जय गोपाल ये लाला लाजपत राय के विचारो से भले पसंद नहीं करते थे लेकिन उनकी मौत से दुःख बहुत हुआ था इसका बदला हम जरुर लेंगे।

जेम्स स्कोट जिसने लोगो को मारने का फरमान दिया था उसको हम गोली मारेंगे, चारो ने तैयारी कर ली लाहौर में कोतवाली के सामने ( Lahore Police head quarter) आसपास चारो छिप गए। उर जेम्स स्कोट का निकलाने का इन्तेजार करने लगे लेकिन गलती यहाँ ये हो गई की स्कोट की जगह deputy Superintendent of police बाइक से जैसे ही निकलते हैं, राजगुरु ने गोली मार दी उसके बाद भगत सिंह दौड़कर उसके पास आया और उसने 3 गोली उसके सर में मारी और वो मर गया। वहीं पर एक थानेदार था जो हिन्दुस्तानी ही था वो उसके पीछे दौड़ पड़े तो चंद्रशेखर ने कहा की मैं तुझे नहीं मारना चाहता हूँ।

तुम एक भारतीय हो जान की खैर चाहते हो तो वापस चले जाओ वो ब्रिटिश के अधीन था वो नहीं माने तो उसको भी गोली मार दी। वहीं पर कुछ दुरी पर DAV कॉलेज थी लाहौर में जहाँ इसकी चलती थी तो उसके पीछे से छिपकर भाग निकले, अब उसके बाद जगह जगह इन लोगो की खोजबीन शुरू हुई, छापे पड़ने लगे और अगले ही दिन भगत सिंह ने लाल स्याही से पर्चे पे लिख लिख कर पुरे लाहौर में चिपका दिया कि हमने लाला लाजपत राय की मौत का बदला सांडर्स की हत्या करके ले लिया है उसके बाद ब्रिटिश सरकार पूरी तरह से हिल गया बहुत गुस्सा हो गए अब तो इसको पकड़ना ही है।

ब्रिटिश सरकार लाहौर से निकलने वाले हर इन्सान पर नजर रखा हुआ था भगत सिंह ने लाहौर से भागने की तैयारी कर रहे थे। भगत सिंह और राजगुरु भगवतीचरण के पास गए और कहा की हमें यहाँ से किसी तरह निकलना है इसके लिए आपकी मदद चाहिए। और कहा कि भाभी जी को बस मेरी पत्नी का किरदार निभाना है थोड़ी देर के लिए, किसी तरह भगत सिंह उन्हें मना लेते हैं। भगत सिंह सीख थे शुरू से ही सर पर पगड़ी थी और चेहरे पर दाढ़ी थी लेकिन अब इन्होने अपना चेहरा ही बदल लिया इन्होने बाल छोटे करवा लिए पगड़ी उतार दी, दाढ़ी मुरवा दिया सिर्फ मूंछे रखी और सर पर Hat रख लिया।

अंग्रेजी पोशाक पहना टाई लगाई दुर्गा भाभी को साथ में लिया और पहुँच गए रेलवे स्टेशन राजगुरु को नौकर के वेश में बदला दिया। राजगुरु को सेकेण्ड क्लास की सिट दिलाई और खुद 1st क्लास AC की टिकट लिया और भटिंडा के रास्ते कोलकाता का ट्रेन पकड़ लिया और निकल लिए और इधर अंग्रेज हाथ मलता रह गया।

भगत सिंह ने जब सेंट्रल असेंबली में बम क्यों फेंका?

ब्रिटिश सरकार की मजदुर विरोधी नीतियों से भगत सिंह बहुत दुखी थे उसके खिलाफ आवाज उठा रहे थे। अंग्रेज सुन नहीं रहे थे फ्रेंच रेवुलेशन के दौरान 1893 में फ्रेंच असेंबली में के अंदर low intensity bomb फेंका गया था जिससे किसी को नुकसान नहीं हुआ था।

उन्होंने भी वैसा ही करने के लिए तैयारी की और अपने साथ में बट्टूकेश्वर दत्त को लिया, और एक low intensity का bomb तैयार किया। और कुछ पर्चे लिखे और पहुँच गए सेंट्रल असेंबली में और खालो जगह ढूँढा और वहां low intensity का bomb फेंक दिया की जिससे किसी को नुकसान न हो। चारो तरफ धुआं धुआं फ़ैल चुका था और इसके बाद जो उन्होंने पर्चा लिखा था उसको चारो तरफ फेकने लगे। और हर पर्चे पे लिखा था बहरो को सुनाने के लिए धमाका जरुरी है इतना धुआं था की वो चाहते तो भाग सकते थे लेकिन नहीं भागे और कहने लगे इन्कलाब जिंदाबाद इन्कलाब जिंदाबाद।

और जानबूझ कर खुद को गोरो के हवाले कर दिया और कहा अभी मुझे गोली मार दो भगत सिंह चाहता था अंग्रजी हुकूमत मुझे पकड़ ले क्योंकि हो सकता है देश की आजादी की जो आवाज है माहौल है वो ठंडा होनवाला है। आजादी की आवाज धीरे धीरे कम हो रही थी, लोग ठन्डे पड़ रहे थे, तो देश की आजादी की आग सुलगती रहे इस वजह से भगत सिंह ने खुद को उसमे झोंक दिया। खुद को अंग्रेजो के हवाले कर दिया ताकि लोग भगत सिंह की क़ुरबानी को ऐसे ही न जाने दे और और आजादी की आग और तेज हो जाये।

Bhagat Singh biography in hindi

भगत सिंह को 24 मार्च की जगह 23 मार्च को फांसी क्यों दी गई?

भगत सिंह और उसके साथी को गिरफ्तार करने के बाद फांसी की सजा सुनाई गई 24 मार्च 1931 की तारीख मुक़र्रर की गई।इनका लगभग दो साल का कारावास थ, ये ऐसे क्रन्तिकारी थे जो जेल में भी आजाद थे वहां भी छोटी छोटी से समस्या के लिए आन्दोलन कर दिया करते थे। गोरो के नाक में दम कर देते थे क्योंकि वहां के खाने पीने की अच्छी व्यवस्था नहीं थी, एक कमरे में 10 कैदियों को रखते थे, बर्तन साफ नहीं होते थे, रौशनी नहीं थी खिड़की नहीं थी और उसके खिलाफ आन्दोलन शुरू कर देते थे, अंग्रेज इससे घबराजाते थे और कहा अरे यार इसको अलग सेल में रखो।

इससे सारे भारतीय बहुत जल्दी प्रभावित हो जाते हैं और आन्दोलन शुरू कर देते हैं, सही खान-पान की व्यवस्था न मिलने पर भगत सिंह और उसके कुछ साथी 64 दिन के लिए अन्न जल त्याग अनशन पर बैठ गए चले गए। अंग्रेज ने शुरू में ज्यादा ध्यान नहीं दिया ऐसे ऐसे करते 64 दिन बीत गए कुछ नहीं खाया और उस समय क्रान्तिकारी यतीन्द्र दास शहीद हो गए। भगत सिंह भी धीरे धीरे शरीर से कमजोर होता जा रहा था, लेकिन जिगर से अभी भी मजबूत थे। उनके चेहरे पर मुस्कान रहती थी अब जेलर भी बहुत परेशान हो रहे थे जेल में इन्कलाब जिंदाबाद के खूब नारे लगाते थे।

आख़िरकार अंग्रेजो को घुटने टेकने पड़े, उन दिनों भगत सिंह कई लेख भी लिखा करते थे इन्होने सब से कह रखा था कि जब भी कोई उनसे मिलने आयेगा नई किताब ले के हीआएगा। और जेल में ही करीब 300 किताबे पढ़ डाली, और करीब 3000 पन्ने लिख भी डाले और उसको बाहर भेजते भी थे। जिसमे से आज कुछ है तो कुछ नही अपने पास एक छोटी सी भगवत गीता की किताब जरुर जरुर रखते थे और साथ में स्वामी विवेकानंद की तस्वीर भी रखते थे। जेल में किताबे पढने की दीवानगी से जेलर भी अकसर बहुत परेशान रहा करते थे।

भगत सिंह कार्ल मार्क्स और लेनिन से बहुत ज्यादा ही प्रभावित थे, जब इनसे आखिरी इच्छा पूछी गई तो भगत सिंह ने बताया कि मुझे लेनिन की पूरी बायोग्राफी पढनी है। और जिस दिन भगत सिंह को फांसी होनेवाली थी उस दिन भी लेनिन की बायोग्राफी पढने में मग्न थे और जब उसे लेने के लिए जेलर आये तो उसने कहा रुको अभी देखते नहीं अभी एक क्रन्तिकारी दूसरे क्रन्तिकारी से मिल रहा है, और लेनिन की किताब की आखिरी पन्ना पढ़कर ही उठते हैं। जब किसी का फांसी का दिन नजदीक आता है तो वो घबराता हैं लेकिन यहाँ भगत सिंह के चेहरे पर एक अलग ही मुस्कान थी।

डर तो उसके अगल बगल भटक भी नहीं रहे थे ये देखकर जेलर भी हैरान थे ये कैसा इन्सान है भला मौत नजदीक है और ये हंस रहा है, जब लोगो को पता चला की भगत सिंह को फांसी 24 मार्च 1931 को होनेवाली है। तो लोग उसके लिए सड़को पर उतर गए आन्दोलन करने लगे बहुत बड़े तादात में लोग सड़क पर उतरकर फांसी रोको, फांसी रोको का हर तरफ नारे गूंज रहे थे इससे जेलर बहुत घबरा रहे थे। और ब्रिटिश सरकार पर दबाव बन रहा था कि कहीं ऐसा न हो कि उसकी फांसी के दिन 24 मार्च को लोग दंगा करवा दे।

ऐसा न हो आग ही लगा दे बहुत भीड़ आने वाली थी जेलरो को पहले ही एहसास हो चुका था की फांसी के दिन बहुत से लोग आ जायेंगे। और ऐसा पहली बार हुआ कि फांसी का समय जो सुबह का होता है केवल इनके चक्कर में कहीं 24 मार्च के दिन दंगा न कर दे जैसे तैसे करके 24 मार्च की जगह 23 मार्च 1931 की रात को ही फांसी दे दिया गया। उससे पहले भगत सिंह ने बड़े प्यार से कहा था तुम सर पर कपड़ा नहीं डालना और हमारे हाथ भी नहीं बांधना कुछ ऐसा हो सकता है क्या उन्होंने कहा ठीक है हाथ नहीं बांधेगे लेकिन सर पर कपड़ा दो हमें डालना ही पड़ेगा।

उसके बाद भगत सिंह सुखदेव, राजगुरु मुस्कुराते हुए नारा लगाते हैं इन्कलाब जिंदाबाद और उसके बाद फंदे की चूमकर फांसी में झूल गए।

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जब भगत सिंह से जेल में मिलने घर वाले गए

जब भगत सिंह से मिलने के लिए उनके परिवार वाले जेल गए तो भगत सिंह को जेल के बैरक से बाहर लाया गया। उसके साथ जेल के कुछ पुलिसकर्मी भी थे भगत सिंह को फांसी होनेवाली थी लेकिन फिर भी उसके चेहरे से एक जरा सी उदासी नहीं थी कुछ परेशानी नहीं थी। बल्कि पुलिसकर्मी वाले हैरानी में थी क्योंकि पुलिसकर्मी ये देखकर हक्के बक्के रह गए की भगत सिंह को कुछ दिन में फांसी पर चढ़ाया जायेगा इनके चेहरे पर डर होनी चाहिए लेकिन ये तो मुस्कुरा रहा है और मां से कहा की बेबीजी दादाजी अब ज्यादा दिन तक नहीं रहेंगे आप जाकर पास ही रहना।

सबको भगत सिंह ने धैर्य बांधने को कहा सब को सांत्वना दी अंत में मां से मुस्कुराते हुए कहा मां लाश लेने आप नहीं आना कुलबीर भाई को भेज देना कहीं आप रो पड़ी तो लोग कहेंगे की भगत सिंह की मां रो रही है। बस इतना कहकर वे जोर से हंस पड़े और वहां मौजूद जेल के पुलिसकर्मी ये सब देखकर और भी हैरान हो गए।

भगत सिंह और अन्य को शहीद का दर्जा तक नहीं दे सकी सरकार क्यों?

कुछ ही लोगो को अफ़सोस होता है कि भगत सिंह आज भी अंग्रेजो की और अन्य किताबों में शहीद भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और अन्य को शहीद का दर्जा नहीं दिया गया है बल्कि आतंकवादी बताया गया है। आज हमारा देश की स्थिति इतनी खराब हो गई है इतना गरीब हो चुकी है कि शहीद को शहीद का दर्जा तक नहीं दे सकती है। स्थिति देश की ऐसी हो गई है कि एक छोटा सा काम सरकार नहीं कर पाती है और बाते तो बड़ी बड़ी करती है। बताओ शहीद को शहीद का दर्जा देने के लिए सरकार से ही लड़नी पड़ती है जबकि उसे सब पता है ऐया आखिर क्यों और कब तक चलेगा?

कितनो ने शहीदों को शहीद का दर्जा दिलाने के लिए सरकार को 2013 में ही आवेदन दे चुके थे लेकिन सरकार हर बार ठुकराती रही। क्या इन सब क्रांतिकारियों ने अपनी जान भारत की आजादी के लिए इसलिए कुरबान की थी कि ताकि एक दिन इनकी क़ुरबानी को लोग भूल जाये. लोग शहीदों को पहचान तक नहीं पायें ऐसा क्यों? बस लोग अपनी मतलब के लिए जीये जिसके हाथ में ये सब करने क्षमता है वो तो बड़े सुकून की ज़िन्दगी जी रहे है लेकिन वो एक पल के लिए भूल जाते हैं कि वो जितने आजादी से सकूं से घूम पा रहे हैं ये सब उन शहीदों की ही बदौलत घूम पा रहे हैं।

सिस्टम शहीदों को शहीद होने तक दर्जा तक नहीं दे सकती है, ऐसी सरकार से भला हम और क्या उम्मीद कर सकते हैं। ऐसे आज भी बहुत से लोग है जिसको सरकार किसी तरह की सुख- सुविधा तक मुहैया नहीं करा पाती है, हाल तक नहीं पूछती है।

भगत सिंह की फांसी 100 प्रतिशत रोकी जा सकती थी

जी हाँ आपने सही सुना है भगत सिंह की फांसी सौ प्रतिशत रोकी जा सकती थी अगर महात्मा गाँधी चाहते तो भगत सिंह राजगुरु, सुखदेव की फांसी बहुत ही आसानी से रिके सकते थे। लेकिन महात्मा गाँधी ने सीधे इंकार कर दिया और कहा की ये मेरे वसूलो के खिलाफ होगा जबकि केस कोई बड़ा नहीं था भले कोई लोगो को मारा था लेकिन सबसे पहले हमला गोरो ने भी तो किया था लाला लाजपत राय को मारा था। महात्मा गाँधी ने कहा की जो मेरे दल से और और मेरे बताये गए अहिंसा तरीके से चलते होते तो जरुर बचा लेता लेकिन नहीं बचाऊंगा। और भी बहुत सी चीजे है जिनके बारे में मैं आपको बताने वाला

ऐ जोश क्या गरज मुझे हूरो-कसूर से

मेरा वतन मेरे लिए जन्नत से कम नहीं

इन्हें भी पढ़े

Bhagat Singh birthday date

27 September 1907

Bhagat Singh death

23 March 1931

Bhagat Singh father name

Kishan Singh

Who is Bhagat Singh wife?

When was Bhagat Singh born?

27 September 1907

भगत सिंह को फांसी कब दी गई?

23 मार्च सन् 1931

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